यह मेरा कुर्ता और पैजामा है जो फ्रेम कर के रखा है मैंने ….. जानते हैं क्यों ?
एक बाबा थे जिनको लोग पागल कहा करते थे , बाबा बोल नहीं पाते थे सही ढंग से और ना सही से सुन पाते थे …. पैर भी टेढ़ा था और शरीर एकदम दुबला पतला सा …. बाबा सबरी माता के वंशस थे …. मैं बाबा से मिलने रोज़ रेलवे स्टेशन पर जाता था …. बाबा वहीं भीख माँगा करते थे …. मैंने कई बार कहा मेरे साथ चलिए पर वो चलते नहीं थे ….. बाबा दिमाग़ से कमजोर थे लेकिन फिर भी वो रोज़ रेलवे स्टेशन पर शाम को मेरा इंतेज़ार करते थे की मैं आऊँगा उनका हाँथ पकड़कर उठाऊँगा और लेजाकर अपने साथ लाया हुआ ख़ाना खिलाऊँगा …अगर किसी दिन मैं नहीं जाता था तो मेरे साथ के लोग जब मेरी अनुपस्थिति में ख़ाना खिलाने जाते तब उनसे अपनी तोतली भाषा में पूछते की …. बाबू साहेब कहाँ हैं ….. वो स्टेशन के बाहर गेट पर बैठे बस मेरी सफ़ेद गाड़ी का इंतज़ार करते ….. मैंने वही उनकी दवाई , कपड़े , खाने हर चीज़ का इंतज़ाम कर दिया था …… सर्दी का मौसम आया … बाबा ग़ायब थे स्टेशन से …. मैंने पता किया तो बाक़ी भीख माँगने वालों ने बताया की बाबा को उनकी बहन अपने साथ लेकर घर चली गई क्यों की यहाँ अब ठंड लग रही थी …. मैं खुश था की चलो अब बाबा अपनी बहन के घर रहेंगे …. मैंने फिर भी उनकी बहन का गाँव पता करवाया और घर उनके भेज कर उस गाँव के लोगों को फ़ोन पर उनकी बहन से बात की …. बहन ने बताया की सर्दी की वजह से लेते आये हैं …. बहन भी बहुत ग़रीब थी … पर अब मैं एकदम संतोष से था की बाबा ठीक जगह हैं …. दो महीने लगभग बीत गये … एक रात बाबा की याद आने लगी , मैंने अभिषेक से बोला की ज़रा बाबा के गाँव फ़ोन कर के पूछ लेना की बाबा कैसे हैं …. अभिषेक भूल गया …. फिर मुझे बाबा की याद आने लगी तो मैंने अभिषेक से पूछा की बात हुई बाबा से ? बोला भूल गये ….. फिर मैंने ग़ुस्से में ख़ुद से बाबा के गाँव फ़ोन लगाया ……. पता चला कि बाबा चार दिन से बहुत बीमार हैं और मुझे यानी अपने बाबू साहब को बेहोशी में बोल बोल कर याद कर रहे हैं ……. अगले दिन सुबह सुबह मैंने डॉक्टर और एम्बुलेंस बाबा के गाँव में उनके घर भेजी …. डॉक्टर साहब ने बताया कि उम्मीद बहुत कम है ….. अस्पताल भर्ती करवाना होगा …. मैंने बाबा को उसी समय उनके रिश्तेदार के साथ एम्बुलेंस से गाज़ीपुर बुला लिया….. मैं ज़िला अस्पताल के गेट पर पहुँच गया …. बाबा की एम्बुलेंस भी आयी …. बाबा के शरीर में कोई हल चल नहीं थी …. एक आँख खुली की खुली थी …. उन्होंने मुझे जैसे ही देखा उनकी आँख में से आँसू तेज़ी से बहने लगा ….. उनके घर के लोग इस दृश्य को देख भावुक हो गये …. मैं ख़ुद बहुत भावुक हो गया …. बाबा को भर्ती करवाया गया …. लकवा मार चुका था बाबा को …. रात को मैं अपने घर चला गया …. बाबा का इलाज चल रहा था …. अगले दिन मैं अस्पताल पहुँचा … बाबा के कुछ टेस्ट करवाये …. उसके बाद बाबा के बेड पर उनके बग़ल में बैठ गया मैं …. यही कुर्ता - पैजामा मैंने पहना था …. बाबा अपना एक हाँथ बार बार मेरे ऊपर पटक रहे थे और देख रहे थे … बहुत बार उन्होंने ऐसा किया …. उसके बाद मैं उठा और उनकी रिपोर्ट लेने के लिये गया ही था की बस मेरे पास फ़ोन आया की बाबा मर गये ….. मैं वापस बाबा के वार्ड की तरफ़ चल दिया ….. सारी स्मृतियाँ बाबा से जुड़ी मन में घुम रहीं थीं ….. बाबा बहुत आशीर्वाद देते थे …. बाबा का शरीर तो मैं अपने पास नहीं सहेज कर रख सकता था लेकिन जो उनका स्पर्श मेरे इस कुर्ते में हुआ था उस अहसास को मैंने जीवन भर के लिये इस कुर्ते में सहेज कर रख लिया …. बिना धुलाये यह कुर्ता तब से ऐसे ही है ….मैं आज भी बाबा से आशीर्वाद लेता हूँ …… बाबा के जाने के बाद बाबा के परिवार को मैंने अपने यहाँ नौकरी दी …. आज उनका वो परिवार मेरे साथ है